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पोकेटमार भाई
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पोकेटमार भाई
पोकेटमार भाई
बस से उतर कर पॉकेट में हाथ डाला तो मैं शॉक रह गया, मेरी पॉकेट कट चुकी थी...!
पॉकेट में था भी क्या..?? कुल 150 रुपये और एक खत..!!
जो मैने अपनी माँ को लिखा था-
मेरी नौकरी ख़तम हो गई है; अभी पैसे नहीं भेज पाउँगा...
3 दिन से... वो पोस्टकार्ड मेरी पॉकेट में पड़ा था...! पोस्ट करने को मन ही नहीं कर रहा था..!
वैसे तो 150 रुपये कोई बड़ा अमाउंट नहीं था लेकिन जिसकी नौकरी चली गई हो उसके लए 150 रुपये...1500 रुपये से कम नहीं होते...!
कुछ दिन गुज़रे..!
माँ का खत मिला..!
पढ़ने से पहले.. मैं सहम गया...! ज़रूर पैसे भेजने को लिखा होगा...!
लेकिन खत पढ़कर मैं शॉक हो गया..!
मा ने लिखा था: "बेटा, तेरा 500 रुपये का भेजा हुआ मनीओडर मिल गया है..!
तू कितना अछा है..! पैसे भेजने में कभी लापरवाही नहीं करता...!
मैं इसी सोच में पड़ गया की आख़िर मनीओडर किसने भेजा होगा...??
कुछ दिन बाद.. एक ओर लेटर मिला..!
बड़ी बेकार हॅंडराइटिंग थी..
बड़ी मुश्किल से पढ़ पाया..!
उस में लिखा था...!
भाई 150 रुपये तुम्हारे और 350 रुपये
अपनी और से मिलकर मैने तुम्हारी मा को..मनीओडर भेज दिया है...!
फिकर ना करना..! मा तो सबकी एक जैसी होती है ना..!!
वो क्यूँ भूखी रहे..??
तुम्हारा -
पोकेटमार भाई..!!!!
आदमी चाहे जितना भी बुरा काम क्यू ना करता हो मा के लिए फीलिंग्स सब की एक जेसी होती हैं....
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