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मुनि, बहूं & वृद्ध पुरुष
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मुनि, बहूं & वृद्ध पुरुष
एक दिन एक परिवार में कम आयु के
मुनि भिक्षा मांगने के लिए गये। उन्हें देखकर एक
बहूं ने कहा ‘‘मुनिवर अभी तो सवेरा है।’’
मुनि उत्तर दिया, ‘‘बहन मुझे काल
का पता नहीं चलता’’ ।
फिर मुनि ने पूछा, ‘‘तुम्हारा पुत्र कितने वर्ष
का है।’’
बहू ने उत्तर दिया, ‘‘सोलह वर्ष का।’’
मुनि ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति का आयु क्या है ?’’
बहू ने उत्तर दिया,‘‘आठ वर्ष ।’’
मुनि ने पूछा और ससुर।’’
बहू बोली वह तो अभी पालने में ही झूल रहे हैं।’’
और भी ऐसे प्रश्न पूछे मुनि ने । बहू के ससुर सब कुछ
सुन रहे थे। बड़ा क्रोध आया उन्हें घर की इज्जत
खाक में मिला रही है जब मुनि भिक्षा लेकर चल
गये तो वृद्धपुरुष ने बहू को खूब डाटा। बहूँ ने शान्त
भाव से कहा, ‘‘ आप मुझे डाँटे यह
आपको शोभा नहीं देता, पिता जी मैं मुनि के
प्रश्नों का उत्तर कैसे न देती।
आप उनके गुरु के पास जाइये और उनसे कहिए
कि वह मुनि फिर इधर न आवें।’’ वृद्ध पुरुष को यह
बात जँचगई । वह ऐसे
मुनियों को डाँटना भी चाहते थे। इसलिए व
तुरन्त उनके गुरू के पास पहुँचे उनसे
मुनि की शिकायत की। गुरु जी ने उन
मुनि को बुला भेजा। मुनि ने सब बाते सुनकरपूछा,
‘‘गुरुजी भला इनसे पूछिए , मैंने कौन
सी अशोभनीय बातें कीं।’’
वृद्ध ने कहा मेरी पुत्रवधू ने कहा,
‘‘अभी सवेरा ही है। इसने उत्तर दिया ‘मैंने काल
को नहीं जाना।’ भला यह बात सच
हो सकती है।’
शिशु मुनि बोले, ‘‘जी बहन ने मुझसे पूछा था,
‘आपने इस उभरती उम्र में संयास का कठोर मार्ग
क्यों ग्रहण किया।’’मैंने उत्तर दिया ,‘बहन
कालअर्थात् मृत्यु का तो कोई भरोसा नहीं।’
‘गुरुदेव इसमें में तो कोई अशिष्ट बात नहीं है।’
वृद्ध ने कहा, ‘‘अच्छा इसे भी छोड़िये.
मेरी पुत्रवधू ने अपने पुत्र की आयु सोलह वर्ष। ,
पति की आयु आठ वर्ष और मुझ वृद्ध पुरुष
को पालने में झूलने वाला ही बतायाथा,
भला यह बात सही कैसे हो सकती है ?’’
शिशु मुनि ने उत्तर दिया, ‘‘गुरुदेव मैंने बहन से
पूछा था कितुम्हारे घर में कोई ‘धर्मज्ञ’ है
या नहीं, इस पर उसने उत्तर दिया । ‘मेरा पुत्र
जन्म से ही धर्म-कर्म जानता है और उसकी आयु
सोलह वर्ष है। मेरे पति पहले तो नास्तिक थे,
किन्तु अब मेरे समझाने –बुझाने से वह
भी धर्मनिष्ठ हैं, लेकिन मेरे ससुर आज भी धर्म
की बात सुनना नहीं चाहते।’’ यह वृद्ध पुरुष धर्म
का रहस्य जानते तो आपके पास आते ही नहीं।
‘‘यह सुनकर वृद्ध पुरुष लज्जित हुए। वह अब धर्म के
रहस्य और शक्ति को समझ गए थे।’’
मुनि भिक्षा मांगने के लिए गये। उन्हें देखकर एक
बहूं ने कहा ‘‘मुनिवर अभी तो सवेरा है।’’
मुनि उत्तर दिया, ‘‘बहन मुझे काल
का पता नहीं चलता’’ ।
फिर मुनि ने पूछा, ‘‘तुम्हारा पुत्र कितने वर्ष
का है।’’
बहू ने उत्तर दिया, ‘‘सोलह वर्ष का।’’
मुनि ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति का आयु क्या है ?’’
बहू ने उत्तर दिया,‘‘आठ वर्ष ।’’
मुनि ने पूछा और ससुर।’’
बहू बोली वह तो अभी पालने में ही झूल रहे हैं।’’
और भी ऐसे प्रश्न पूछे मुनि ने । बहू के ससुर सब कुछ
सुन रहे थे। बड़ा क्रोध आया उन्हें घर की इज्जत
खाक में मिला रही है जब मुनि भिक्षा लेकर चल
गये तो वृद्धपुरुष ने बहू को खूब डाटा। बहूँ ने शान्त
भाव से कहा, ‘‘ आप मुझे डाँटे यह
आपको शोभा नहीं देता, पिता जी मैं मुनि के
प्रश्नों का उत्तर कैसे न देती।
आप उनके गुरु के पास जाइये और उनसे कहिए
कि वह मुनि फिर इधर न आवें।’’ वृद्ध पुरुष को यह
बात जँचगई । वह ऐसे
मुनियों को डाँटना भी चाहते थे। इसलिए व
तुरन्त उनके गुरू के पास पहुँचे उनसे
मुनि की शिकायत की। गुरु जी ने उन
मुनि को बुला भेजा। मुनि ने सब बाते सुनकरपूछा,
‘‘गुरुजी भला इनसे पूछिए , मैंने कौन
सी अशोभनीय बातें कीं।’’
वृद्ध ने कहा मेरी पुत्रवधू ने कहा,
‘‘अभी सवेरा ही है। इसने उत्तर दिया ‘मैंने काल
को नहीं जाना।’ भला यह बात सच
हो सकती है।’
शिशु मुनि बोले, ‘‘जी बहन ने मुझसे पूछा था,
‘आपने इस उभरती उम्र में संयास का कठोर मार्ग
क्यों ग्रहण किया।’’मैंने उत्तर दिया ,‘बहन
कालअर्थात् मृत्यु का तो कोई भरोसा नहीं।’
‘गुरुदेव इसमें में तो कोई अशिष्ट बात नहीं है।’
वृद्ध ने कहा, ‘‘अच्छा इसे भी छोड़िये.
मेरी पुत्रवधू ने अपने पुत्र की आयु सोलह वर्ष। ,
पति की आयु आठ वर्ष और मुझ वृद्ध पुरुष
को पालने में झूलने वाला ही बतायाथा,
भला यह बात सही कैसे हो सकती है ?’’
शिशु मुनि ने उत्तर दिया, ‘‘गुरुदेव मैंने बहन से
पूछा था कितुम्हारे घर में कोई ‘धर्मज्ञ’ है
या नहीं, इस पर उसने उत्तर दिया । ‘मेरा पुत्र
जन्म से ही धर्म-कर्म जानता है और उसकी आयु
सोलह वर्ष है। मेरे पति पहले तो नास्तिक थे,
किन्तु अब मेरे समझाने –बुझाने से वह
भी धर्मनिष्ठ हैं, लेकिन मेरे ससुर आज भी धर्म
की बात सुनना नहीं चाहते।’’ यह वृद्ध पुरुष धर्म
का रहस्य जानते तो आपके पास आते ही नहीं।
‘‘यह सुनकर वृद्ध पुरुष लज्जित हुए। वह अब धर्म के
रहस्य और शक्ति को समझ गए थे।’’
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