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The Hell Lovers (स्वास्तिक)....A Love Against the God 【preview- हिंदी में】
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The Hell Lovers (स्वास्तिक)....A Love Against the God 【preview- हिंदी में】
कुछ दोस्तों(specially Faceless Love) के आदेश पर मेरी सबसे बेहतरीन कहानी के कुछ अंश यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। क्योंकि यह एक प्रीव्यू मात्र हैं मैं पूरी कहानी पोस्ट नही करूँगा। आप सभी से निवेदन हैं कि कहानी के बारें में अपने रिव्यु(विशेषतः नेगेटिव रिव्यु) जरूर दे। मुझे अच्छा लगेगा अगर आप कहानी की कम से कम एक गलती बताये।
आपका,
नरक प्रेमी
आपका,
नरक प्रेमी
प्रस्तावना
प्रस्तावना (Introduction)
“ईश्वर हैं और वह महान हैं” यह सभी की मान्यता हैं. लेकिन क्या ये इतना ही सत्य हैं? क्या हो अगर ये सच न हो? अगर वह उतना महान न हो जितना की हम सोचते हैं. अगर आपको पता चले की जिसे आज तक आप सच समझ रहे थे वो सब एक झूठ हैं और जिन्हें आप पूजते थे वो इस लायक ही नहीं हैं. अगर आप जिससे सब से ज्यादा प्यार करते हैं उसे ख़त्म किया जाना हैं क्योंकि ईश्वर ऐसा चाहते हैं तो क्या आप लड़ेंगे उसे बचाने के लिए जिससे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं या आप हार मान लेंगे, केवल इस लिए क्योंकि आपको ईश्वर से लड़ना हैं.....
“THE HELL LOVERS” (स्वास्तिक) एक प्रयास हैं सत्य को समझने का, कि वह कभी परिभाषित नहीं हो सकता. यह एक प्रयास हैं प्यार को समझने का कि वह तब भी होता हैं जब केवल नफरत ही हो; यह एक प्रयास हैं ईश्वर को समझने की वह उतना जटिल नहीं हैं जितना हमें बताया गया हैं. फिर चाहे इसके लिए नास्तिकता की हदों से ही क्यों न गुजरना पड़े..
आख्यान (Narration)
आख्यान (Narration)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
यह गीता में कहा गया एक ऐसा श्लोक हैं जिससे सिर्फ आप इंसानों को ही नहीं, हम देवताओ और असुरो तक को वर्षो तक मुर्ख बनाया गया हैं. जब भी कोई विपति आये बैठ जाओ और प्रतीक्षा करो; महान ईश्वर अवतार लेगा और तुम्हारी सारी विपदाओ का नाश करेगा.
मैं स्वास्तिक हूँ, स्वर्गलोक की विशेष सुरक्षा सेना रोहिणी का सेनाध्यक और यह हैं मेरा दोस्त और यान विशेषज्ञ वरुण, हम दोनों पर अमरावती की सुरक्षा की जिम्मेदारी हैं. तुम्हारी सोच से विपरीत सम्पूर्ण स्रष्टि पांच ब्रह्माण्ड में बंटी हुई हैं जो की स्वर्गलोक, नरकलोक, प्रथ्वीलोक, शुन्यलोक तथा ब्रह्मलोक हैं. देवताओ एवं असुरो के बीच महासंग्राम की समाप्ति के पश्चात ईश्वर ने शांति प्रस्ताव घोषित किया जिसके तहत किसी भी एक ब्रह्माण्ड से दुसरे ब्रह्माण्ड में बिना आपसी सहमती तथा विशेष प्रक्रिया के प्रवेश संभव नहीं हैं. तो फिर हमारा क्या काम हैं?
क्योंकि लड़ना एक देवीय गुण हैं. भूलोक पर भी जब कोई मानव युद्ध में लड़ते हुए मारा जाता हैं तो उसे शहीद की उपाधि देकर पूजा जाने लगता हैं. असुरो से युद्ध विराम होने पर देवता आपस में लड़ने लगे. विभिन्न आकाशगंगाओ के बीच युद्ध छिड़ गए और क्योंकि देवलोक की राजधानी अमरावती सबसे साधन संपन्न और खुशहाल हैं तो सबसे ज्यादा हमले इसी पर होते हैं. हम वर्षो से देवराज और उनके मुर्ख देवतओं की इन हमलावरों से की रक्षा कर रहे हैं.
समुन्द्र मंथन के समय कुछ ही देवताओ ने अमृत पिया था, और जिन देवताओ ने अमृत नही पिया था वो अमर नही हैं, वो आम इंसानों की तरह ही जीते हैं और मरते हैं; हम भी उनमें से ही हैं .
आपके मन में सवाल उठाना उचित हैं कि भला स्वर्ग की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक नश्वर प्राणी को क्यों दी गई? कारण सरल हैं, मौत का भय हमें लड़ने के लिए प्रेरित करता हैं, अमरता एक अभिशाप हैं....
भाग-१ नर्क-प्रवेश (Welcome to the Hell)
भाग-१ नर्क-प्रवेश (Welcome to the Hell)
(देवलोक की राजधानी अमरावती में सुधर्मा दरबार सजा हुआ जिसमे सामने सिंहासन पर देवराज उनकी पत्नी शची के साथ विराजमान हैं तथा सामने सभी देवतागण पदासीन हैं. इन सब के सम्मुख प्रथ्वीलोक की दिवंगत अभिनेत्री मधुबाला नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं. नृत्य की समाप्ति पर सभी देवता प्रशंसा करते हैं.)
देवराज- अति उत्तम देवी! आप जैसी सुंदर स्त्री को तो ईश्वर द्वारा सीधे स्वर्गलोक में भेजा जाना चाहिए था.
मधुबाला- क्षमा करे देवराज! किन्तु मुझे नहीं लगता की स्वर्ग प्राप्ति मात्र सुंदरता से की जा सकती हैं. यह तो अपने कर्मो का परिणाम होता हैं.
(देवराज को इस प्रकार के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी. परन्तु कोई जवाब देते इससे पहले ही प्रहरी ने प्रवेश किया.)
प्रहरी- महाराज, निगरानी दल के अध्यक्ष सुकर्मा आपसे भेंट करना चाहते हैं.
देवराज- उन्हें हमारे मंत्रणा कक्ष में बिठाओ.
प्रहरी- जो आज्ञा महाराज (बाहर चला जाता हैं ).
देवराज मधुबाला से- देवी आप प्रस्थान कर सकती हैं.
देवराज ने सभा समाप्ति की घोषणा की तथा मंत्रणा कक्ष में पहुंचे.
«««•»»»
(मंत्रणा कक्ष में सुकर्मा बड़ी बैचेनी से देवराज की प्रतीक्षा कर रहे हैं. देवराज प्रवेश करते हैं.)
देवराज- क्या बात हैं सुकर्मा जी. अचानक कैसे पधारना हुआ?
सुकर्मा- एक बड़ी समस्या हैं देवराज, रायन आकाशगंगा के विमान हमारी सीमा में घुसपैठ कर रहे हैं.
देवराज- तो इसमें चिंता की कौनसी बात हैं? हमारे रक्षक उनसे लड़ने में सक्षम हैं.
सुकर्मा- निस्संदेह महाराज, परन्तु इस बार सोनाक्षी आकाशगंगा भी उनके साथ हैं. उनसे लड़ना काफी मुश्किल हो रहा हैं.
देवराज- सोनाक्षी कब से रायन के साथ लड़ने लग गए? देवराज ने आश्चर्य से पूछा.
सुकर्मा- यह उनसे आयात रोकने का परिणाम हैं. रायन अपना उल्लू सीधा करने के लिए सोनाक्षी का प्रयोग कर रहे हैं.
देवराज- हम्म...ठीक है...अब क्या करना हैं?
सुकर्मा- हमें रोहिणी की सहायता चाहिए.
देवराज- स्वास्तिक! इससे तो बेहतर होगा मैं स्वयं लड़ने चला जाऊं.
सुकर्मा- इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं हैं महाराज.
देवराज- ठीक हैं...ठीक हैं...अब ओखली में सिर दे ही दिया हैं तो मुसल से भयभीत होने से क्या फायदा?
(देवराज ताली बजाते हैं. एक सेवक उपस्थित होता हैं.)
देवराज- स्वास्तिक को अतिशीघ्र मंत्रणा कक्ष में उपस्थित होने के लिए कहो.
सेवक- जो आज्ञा महाराज.
देवराज- “अतिशीघ्र!” समझे?
सेवक- जी महाराज.
«««•»»»
(यह स्वर्गलोक का सबसे बड़ा युद्ध प्रशिक्षण केंद्र हैं. यहाँ कतार में चतुर्थ श्रेणी के गरुड़ विमान पड़े हैं. इनके कुछ दूर ही दो योद्धा लड़ने का अभ्यास कर रहे हैं.4-5 विद्यार्थी इन्हें देख रहे. दोनों एक-दुसरे पर तलवारों से हमला कर रहे हैं. एक योद्धा भारी पड़ता हैं तथा दूसरा नीचे गिर जाता हैं.)
पहला योद्धा- मैंने कहा था न स्वास्तिक तुम कमजोर पड़ रहे हो.
(तभी दूसरा योद्धा उठता हैं और तलवार की मुठ से पहले के पैर पर हमला करता हैं, पहले योद्धा के हाथ से तलवार गिर जाती हैं और वह नीचे गिर जाता हैं)
स्वास्तिक- याद रखना वरुण, तुम तब तक नहीं जीतते, जब तक तुम्हारा दुश्मन हार न मान ले.
(तभी सेवक प्रवेश करता हैं)
सेवक- स्वास्तिक देवराज ने आपको मंत्रणा कक्ष में “अतिशीघ्र” उपस्थित होने को कहा हैं.
स्वास्तिक(कुर्सी पर बैठते हुए)- क्यों नहीं अभी उपस्थित होते हैं.
(तब तक वरुण भी आकर पास वाली कुर्सी पर बैठ जाता हैं. वो मदिरा पात्र से दो प्याले में शराब लेता हैं और दोनों पीने लगते हैं.)
सेवक- तुम्हे पता होना चाहिए कि प्रशिक्षण केंद्र में मदिरा सेवन पर सख्त पाबंदी हैं.
स्वास्तिक- क्यों हैं?
सेवक- अर्थात?
वरुण- अर्थात यह की अगर देवता वहाँ दरबार में बैठकर सबके सामने मदिरा पी सकते हैं तो हम यहाँ बैठकर क्यों नही पी सकते.
सेवक- ...क्यों कि वह देवता हैं.
स्वास्तिक- मद्यपान के पश्चात देवता, असुरो और मानवो में फर्क ही क्या रहता हैं, सब एक सामान ही तो होते हैं.
सेवक- तुमसे बातों में जितना मेरे बस से तो बाहर हैं.
स्वास्तिक- छोड़ो इसे...यह बताओ उस गुलाब वाली का क्या हुआ, कुछ मामला जमा?
सेवक- कहाँ मित्र? वह तो महारानी की व्यग्तिगत परिचिका निकली. अगर महारानी को पता चल गया तो मेरी खेर नहीं.
स्वास्तिक- मित्र, अगर इतना डरोगे तो प्यार कैसे करोगे?
सेवक- कुछ भी हो मुझे इस झंझट में नहीं पड़ना. तुम जल्दी से महाराज के समक्ष उपस्थित हो जाओ. मैं चलता हूँ.
वरुण- अरे ऐसे कैसे? एक प्याला तो पीकर जाओ.
सेवक- तुम मरवाओगे मुझे, स्वास्तिक तुम जल्दी से पहुँचो.
«««•»»»
देवराज के मंत्रणा कक्ष में देवराज एवं सुकर्मा प्रतीक्षा कर रहे हैं.
स्वास्तिक प्रवेश करता हैं.
स्वास्तिक- प्रणाम महाराज. विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ.
देवराज- रहने दो...मुझे यही अपेक्षा थी. (कुछ देर रूककर) रायन आकाशगंगा ने हमला किया हैं. सुकर्मा को तुम्हारी सहायता चाहिए थी.
स्वास्तिक- इसमें कौनसी नयी बात हैं? ये तो उनका रोज का काम हैं.
सुकर्मा- लेकिन इस बार सोनाक्षी भी उनके साथ हैं.
स्वास्तिक- अरे वाह! सोनाक्षी कब से रायन के साथ लड़ने लग गए?
सुकर्मा- जब से हमने उनसे आयत बंद किये हैं.
स्वास्तिक(लम्बी सांस लेते हुए)- आपकी यह राजनीति... काश! कभी आप स्वयं भी अपने मंत्रीमंडल के साथ लड़ने जाते.
देवराज- तब हमें तुम्हारी आवश्यकता क्योँ होती?
स्वास्तिक- आपको वापस सुरक्षित लेकर आने के लिए...
देवराज- तुम अभी निकल जाओ.
स्वास्तिक- क्यों नही...मगर मेरी एक शर्त हैं.
देवराज- शर्त! कैसी शर्त?
स्वास्तिक- आप चतुर्थ श्रेणी के गरुड़ विमान के लिए कोष पारित करेंगे.
देवराज- नही...नही...ऐसा नही हो सकता...हमारा रक्षा बजट पहले ही बहुत अधिक हैं, और इस वर्ष तो हमें नये महल के लिए भी कोष की आवश्यकता हैं.
स्वास्तिक- आपका महल एक वर्ष इंतज़ार कर सकता हैं, परन्तु मुझे नही लगता हैं कि आपके शत्रु करेंगे.
देवराज- मुझे मालुम था, तुम मेरा बेडा गर्क करके ही जाओगे, ठीक हैं मैं करता हूँ.
(स्वास्तिक बाहर आ जाता हैं, बाहर ही वरुण खड़ा हैं.)
स्वास्तिक- (आँख मारते हुए) तुम्हारा काम हो गया.
वरुण- यह हुई न बात...मृगेश को यह खबर सुनाऊंगा तो ख़ुशी से पागल हो जाएगा.
स्वास्तिक- हाँ...मगर उससे कह देना हमारा १० प्रतिशत हिस्सा हैं.
वरुण- बिलकुल...
...
(स्वर्गलोक के अन्तरिक्ष में दो यान उड़ान भर रहे हैं. एक में स्वास्तिक और वरुण हैं और दुसरे में विनय और अश्विन. )
वरुण- आश्विन सब ठीक हैं न? कोई गड़बड़ नज़र आ रही हैं.
अश्विन- नहीं अभी तक तो कुछ नही दिख रहा हैं. लगता हैं उन्हें हमारे आने की पहले ही खबर लग गयी थी. भाग गए साले.
वरुण- हो सकता हैं शायद....
(तभी एक जोरदार हमला होता हैं. आश्विन का यान पीछे से जलने लगता हैं और इधर उधर लहराने लगता हैं.)
अश्विन- हम पर हमला हुआ हैं....हमारा यान बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चूका हैं.
स्वास्तिक- तुम लड़ सकते हो?
आश्विन- नहीं...नहीं...यान पीछे से पूरा नष्ट हो चुका हैं. हम नहीं लड़ सकते हैं.
वरुण- ठीक हैं...आपातकालीन नावो का प्रयोग करो और यान से बाहर निकलो. हम इनसे निपटते हैं.
(स्वास्तिक अपना यान दुश्मनों की तरफ मोड़ता हैं और उन पर हमला शुरू कर देता हैं. तभी वो पीछे देखते हैं की आश्विन का यान पूरा नष्ट हो जाता हैं लेकिन यान से कोई बाहर नहीं निकलता हैं.)
वरुण- बेवकूफ! वे यान से बाहर क्यों नहीं निकले.
स्वास्तिक- पता नहीं...पहले इनसे निपटो.
(स्वास्तिक कुछ विमान नष्ट कर देता हैं, लेकिन कुछ विमान उनके पीछे पड़ जाता हैं वे सूर्य की तरफ बढने लगते हैं.)
वरुण- एक...दो..तीन...चार...पांच..अबे ये तो साले पीछे ही पड़ गये. लगता हैं आज तो गए काम से...
स्वास्तिक- जानते हो दुश्मन को हराना सबसे आसान कब होता हैं?
वरुण- कब?
स्वास्तिक- जब उसे लगता हैं की वह जीत चुका हैं. यान को सूर्य की तरफ ले चलो.
वरुण- पागल हो क्या? हम सूर्य की सुरक्षा सीमा से थोड़े ही दूर हैं.
स्वास्तिक- हाँ...मुझे उम्मीद हैं तुमने प्रतिगुरुत्वाकर्षण यन्त्र(एजीएम) को सही से जांच लिया था.
वरुण- नहीं..नहीं...मेरे टेस्ट पुरे नही हुए हैं... हम भरोसा नहीं कर सकते हैं.
स्वास्तिक- और कोई रास्ता नहीं हैं...मुझे तुम पर भरोसा हैं.
(वे तेजी से सूर्य की तरफ बढ़ते हैं, दुश्मन के यान भी उनके पीछे ही लगे हैं. कुछ ही देर में वे सुरक्षा सीमा में प्रवेश करते हैं और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण आकर्षण उन्हें अपनी और खींचने लगता हैं)
स्वास्तिक- सारे नियंत्रण बंद हो चुके हैं. तुम तैयार हो.
वरुण- मरने के लिए?
स्वास्तिक- एजीएम शुरू करो.
( तभी एक धमाका होता हैं और स्वास्तिक का यान गयाब हो जाता हैं दुश्मन के यान सूर्य में समा जाते हैं.)
वरुण- नियंत्रण काम नहीं कर रहे हैं और हम गति सीमा से बाहर हैं. बाहर सिर्फ सफ़ेद रौशनी दिख रही हैं. मैंने कहा था न यह जांचा हुआ नहीं हैं.
स्वास्तिक- शांत रहो, सब ठीक हो जाएगा.
(15 मिनट बाद यान की गति सामान्य होती हैं.)
स्वास्तिक- हम अभी कहाँ हैं?
वरुण- स्वर्गलोक के सूर्य से दो सौ अरब प्रकाश वर्ष दूर! लगता हैं युपीएस(यूनिवर्सल पोजीशनिंग सिस्टम्) ख़राब हो गया हैं.
स्वास्तिक- नही...हम वास्तव में कुछ ज्यादा ही दूर आ गए हैं... यहाँ सूर्य की रौशनी लाल हैं स्वर्गलोक का सूर्य तो नीला हैं.
वरुण- ....और मैंने आजतक बैंगनी रंग के ग्रह भी नहीं देखे हैं.
(तभी सामने कुछ विमान आते दिखाई देते हैं)
-अनजान विमान, अपना परिचय दो वरना ध्वस्त कर दिए जाओगे.
स्वास्तिक- यह स्वर्गलोक की रक्षा सेना रोहिणी के अध्यक्ष स्वास्तिक का विमान हैं.
-दुश्मन विमान! तुम्हारे विमान को बंदी बनाया जाता हैं.
वरुण- दुश्मन? हम कौनसी आकाशगंगा में हैं?
-आकाशगंगा? तुम नरकलोक में हो.
«««•»»»
(देवलोक की राजधानी अमरावती में सुधर्मा दरबार सजा हुआ जिसमे सामने सिंहासन पर देवराज उनकी पत्नी शची के साथ विराजमान हैं तथा सामने सभी देवतागण पदासीन हैं. इन सब के सम्मुख प्रथ्वीलोक की दिवंगत अभिनेत्री मधुबाला नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं. नृत्य की समाप्ति पर सभी देवता प्रशंसा करते हैं.)
देवराज- अति उत्तम देवी! आप जैसी सुंदर स्त्री को तो ईश्वर द्वारा सीधे स्वर्गलोक में भेजा जाना चाहिए था.
मधुबाला- क्षमा करे देवराज! किन्तु मुझे नहीं लगता की स्वर्ग प्राप्ति मात्र सुंदरता से की जा सकती हैं. यह तो अपने कर्मो का परिणाम होता हैं.
(देवराज को इस प्रकार के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी. परन्तु कोई जवाब देते इससे पहले ही प्रहरी ने प्रवेश किया.)
प्रहरी- महाराज, निगरानी दल के अध्यक्ष सुकर्मा आपसे भेंट करना चाहते हैं.
देवराज- उन्हें हमारे मंत्रणा कक्ष में बिठाओ.
प्रहरी- जो आज्ञा महाराज (बाहर चला जाता हैं ).
देवराज मधुबाला से- देवी आप प्रस्थान कर सकती हैं.
देवराज ने सभा समाप्ति की घोषणा की तथा मंत्रणा कक्ष में पहुंचे.
«««•»»»
(मंत्रणा कक्ष में सुकर्मा बड़ी बैचेनी से देवराज की प्रतीक्षा कर रहे हैं. देवराज प्रवेश करते हैं.)
देवराज- क्या बात हैं सुकर्मा जी. अचानक कैसे पधारना हुआ?
सुकर्मा- एक बड़ी समस्या हैं देवराज, रायन आकाशगंगा के विमान हमारी सीमा में घुसपैठ कर रहे हैं.
देवराज- तो इसमें चिंता की कौनसी बात हैं? हमारे रक्षक उनसे लड़ने में सक्षम हैं.
सुकर्मा- निस्संदेह महाराज, परन्तु इस बार सोनाक्षी आकाशगंगा भी उनके साथ हैं. उनसे लड़ना काफी मुश्किल हो रहा हैं.
देवराज- सोनाक्षी कब से रायन के साथ लड़ने लग गए? देवराज ने आश्चर्य से पूछा.
सुकर्मा- यह उनसे आयात रोकने का परिणाम हैं. रायन अपना उल्लू सीधा करने के लिए सोनाक्षी का प्रयोग कर रहे हैं.
देवराज- हम्म...ठीक है...अब क्या करना हैं?
सुकर्मा- हमें रोहिणी की सहायता चाहिए.
देवराज- स्वास्तिक! इससे तो बेहतर होगा मैं स्वयं लड़ने चला जाऊं.
सुकर्मा- इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं हैं महाराज.
देवराज- ठीक हैं...ठीक हैं...अब ओखली में सिर दे ही दिया हैं तो मुसल से भयभीत होने से क्या फायदा?
(देवराज ताली बजाते हैं. एक सेवक उपस्थित होता हैं.)
देवराज- स्वास्तिक को अतिशीघ्र मंत्रणा कक्ष में उपस्थित होने के लिए कहो.
सेवक- जो आज्ञा महाराज.
देवराज- “अतिशीघ्र!” समझे?
सेवक- जी महाराज.
«««•»»»
(यह स्वर्गलोक का सबसे बड़ा युद्ध प्रशिक्षण केंद्र हैं. यहाँ कतार में चतुर्थ श्रेणी के गरुड़ विमान पड़े हैं. इनके कुछ दूर ही दो योद्धा लड़ने का अभ्यास कर रहे हैं.4-5 विद्यार्थी इन्हें देख रहे. दोनों एक-दुसरे पर तलवारों से हमला कर रहे हैं. एक योद्धा भारी पड़ता हैं तथा दूसरा नीचे गिर जाता हैं.)
पहला योद्धा- मैंने कहा था न स्वास्तिक तुम कमजोर पड़ रहे हो.
(तभी दूसरा योद्धा उठता हैं और तलवार की मुठ से पहले के पैर पर हमला करता हैं, पहले योद्धा के हाथ से तलवार गिर जाती हैं और वह नीचे गिर जाता हैं)
स्वास्तिक- याद रखना वरुण, तुम तब तक नहीं जीतते, जब तक तुम्हारा दुश्मन हार न मान ले.
(तभी सेवक प्रवेश करता हैं)
सेवक- स्वास्तिक देवराज ने आपको मंत्रणा कक्ष में “अतिशीघ्र” उपस्थित होने को कहा हैं.
स्वास्तिक(कुर्सी पर बैठते हुए)- क्यों नहीं अभी उपस्थित होते हैं.
(तब तक वरुण भी आकर पास वाली कुर्सी पर बैठ जाता हैं. वो मदिरा पात्र से दो प्याले में शराब लेता हैं और दोनों पीने लगते हैं.)
सेवक- तुम्हे पता होना चाहिए कि प्रशिक्षण केंद्र में मदिरा सेवन पर सख्त पाबंदी हैं.
स्वास्तिक- क्यों हैं?
सेवक- अर्थात?
वरुण- अर्थात यह की अगर देवता वहाँ दरबार में बैठकर सबके सामने मदिरा पी सकते हैं तो हम यहाँ बैठकर क्यों नही पी सकते.
सेवक- ...क्यों कि वह देवता हैं.
स्वास्तिक- मद्यपान के पश्चात देवता, असुरो और मानवो में फर्क ही क्या रहता हैं, सब एक सामान ही तो होते हैं.
सेवक- तुमसे बातों में जितना मेरे बस से तो बाहर हैं.
स्वास्तिक- छोड़ो इसे...यह बताओ उस गुलाब वाली का क्या हुआ, कुछ मामला जमा?
सेवक- कहाँ मित्र? वह तो महारानी की व्यग्तिगत परिचिका निकली. अगर महारानी को पता चल गया तो मेरी खेर नहीं.
स्वास्तिक- मित्र, अगर इतना डरोगे तो प्यार कैसे करोगे?
सेवक- कुछ भी हो मुझे इस झंझट में नहीं पड़ना. तुम जल्दी से महाराज के समक्ष उपस्थित हो जाओ. मैं चलता हूँ.
वरुण- अरे ऐसे कैसे? एक प्याला तो पीकर जाओ.
सेवक- तुम मरवाओगे मुझे, स्वास्तिक तुम जल्दी से पहुँचो.
«««•»»»
देवराज के मंत्रणा कक्ष में देवराज एवं सुकर्मा प्रतीक्षा कर रहे हैं.
स्वास्तिक प्रवेश करता हैं.
स्वास्तिक- प्रणाम महाराज. विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ.
देवराज- रहने दो...मुझे यही अपेक्षा थी. (कुछ देर रूककर) रायन आकाशगंगा ने हमला किया हैं. सुकर्मा को तुम्हारी सहायता चाहिए थी.
स्वास्तिक- इसमें कौनसी नयी बात हैं? ये तो उनका रोज का काम हैं.
सुकर्मा- लेकिन इस बार सोनाक्षी भी उनके साथ हैं.
स्वास्तिक- अरे वाह! सोनाक्षी कब से रायन के साथ लड़ने लग गए?
सुकर्मा- जब से हमने उनसे आयत बंद किये हैं.
स्वास्तिक(लम्बी सांस लेते हुए)- आपकी यह राजनीति... काश! कभी आप स्वयं भी अपने मंत्रीमंडल के साथ लड़ने जाते.
देवराज- तब हमें तुम्हारी आवश्यकता क्योँ होती?
स्वास्तिक- आपको वापस सुरक्षित लेकर आने के लिए...
देवराज- तुम अभी निकल जाओ.
स्वास्तिक- क्यों नही...मगर मेरी एक शर्त हैं.
देवराज- शर्त! कैसी शर्त?
स्वास्तिक- आप चतुर्थ श्रेणी के गरुड़ विमान के लिए कोष पारित करेंगे.
देवराज- नही...नही...ऐसा नही हो सकता...हमारा रक्षा बजट पहले ही बहुत अधिक हैं, और इस वर्ष तो हमें नये महल के लिए भी कोष की आवश्यकता हैं.
स्वास्तिक- आपका महल एक वर्ष इंतज़ार कर सकता हैं, परन्तु मुझे नही लगता हैं कि आपके शत्रु करेंगे.
देवराज- मुझे मालुम था, तुम मेरा बेडा गर्क करके ही जाओगे, ठीक हैं मैं करता हूँ.
(स्वास्तिक बाहर आ जाता हैं, बाहर ही वरुण खड़ा हैं.)
स्वास्तिक- (आँख मारते हुए) तुम्हारा काम हो गया.
वरुण- यह हुई न बात...मृगेश को यह खबर सुनाऊंगा तो ख़ुशी से पागल हो जाएगा.
स्वास्तिक- हाँ...मगर उससे कह देना हमारा १० प्रतिशत हिस्सा हैं.
वरुण- बिलकुल...
...
(स्वर्गलोक के अन्तरिक्ष में दो यान उड़ान भर रहे हैं. एक में स्वास्तिक और वरुण हैं और दुसरे में विनय और अश्विन. )
वरुण- आश्विन सब ठीक हैं न? कोई गड़बड़ नज़र आ रही हैं.
अश्विन- नहीं अभी तक तो कुछ नही दिख रहा हैं. लगता हैं उन्हें हमारे आने की पहले ही खबर लग गयी थी. भाग गए साले.
वरुण- हो सकता हैं शायद....
(तभी एक जोरदार हमला होता हैं. आश्विन का यान पीछे से जलने लगता हैं और इधर उधर लहराने लगता हैं.)
अश्विन- हम पर हमला हुआ हैं....हमारा यान बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चूका हैं.
स्वास्तिक- तुम लड़ सकते हो?
आश्विन- नहीं...नहीं...यान पीछे से पूरा नष्ट हो चुका हैं. हम नहीं लड़ सकते हैं.
वरुण- ठीक हैं...आपातकालीन नावो का प्रयोग करो और यान से बाहर निकलो. हम इनसे निपटते हैं.
(स्वास्तिक अपना यान दुश्मनों की तरफ मोड़ता हैं और उन पर हमला शुरू कर देता हैं. तभी वो पीछे देखते हैं की आश्विन का यान पूरा नष्ट हो जाता हैं लेकिन यान से कोई बाहर नहीं निकलता हैं.)
वरुण- बेवकूफ! वे यान से बाहर क्यों नहीं निकले.
स्वास्तिक- पता नहीं...पहले इनसे निपटो.
(स्वास्तिक कुछ विमान नष्ट कर देता हैं, लेकिन कुछ विमान उनके पीछे पड़ जाता हैं वे सूर्य की तरफ बढने लगते हैं.)
वरुण- एक...दो..तीन...चार...पांच..अबे ये तो साले पीछे ही पड़ गये. लगता हैं आज तो गए काम से...
स्वास्तिक- जानते हो दुश्मन को हराना सबसे आसान कब होता हैं?
वरुण- कब?
स्वास्तिक- जब उसे लगता हैं की वह जीत चुका हैं. यान को सूर्य की तरफ ले चलो.
वरुण- पागल हो क्या? हम सूर्य की सुरक्षा सीमा से थोड़े ही दूर हैं.
स्वास्तिक- हाँ...मुझे उम्मीद हैं तुमने प्रतिगुरुत्वाकर्षण यन्त्र(एजीएम) को सही से जांच लिया था.
वरुण- नहीं..नहीं...मेरे टेस्ट पुरे नही हुए हैं... हम भरोसा नहीं कर सकते हैं.
स्वास्तिक- और कोई रास्ता नहीं हैं...मुझे तुम पर भरोसा हैं.
(वे तेजी से सूर्य की तरफ बढ़ते हैं, दुश्मन के यान भी उनके पीछे ही लगे हैं. कुछ ही देर में वे सुरक्षा सीमा में प्रवेश करते हैं और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण आकर्षण उन्हें अपनी और खींचने लगता हैं)
स्वास्तिक- सारे नियंत्रण बंद हो चुके हैं. तुम तैयार हो.
वरुण- मरने के लिए?
स्वास्तिक- एजीएम शुरू करो.
( तभी एक धमाका होता हैं और स्वास्तिक का यान गयाब हो जाता हैं दुश्मन के यान सूर्य में समा जाते हैं.)
वरुण- नियंत्रण काम नहीं कर रहे हैं और हम गति सीमा से बाहर हैं. बाहर सिर्फ सफ़ेद रौशनी दिख रही हैं. मैंने कहा था न यह जांचा हुआ नहीं हैं.
स्वास्तिक- शांत रहो, सब ठीक हो जाएगा.
(15 मिनट बाद यान की गति सामान्य होती हैं.)
स्वास्तिक- हम अभी कहाँ हैं?
वरुण- स्वर्गलोक के सूर्य से दो सौ अरब प्रकाश वर्ष दूर! लगता हैं युपीएस(यूनिवर्सल पोजीशनिंग सिस्टम्) ख़राब हो गया हैं.
स्वास्तिक- नही...हम वास्तव में कुछ ज्यादा ही दूर आ गए हैं... यहाँ सूर्य की रौशनी लाल हैं स्वर्गलोक का सूर्य तो नीला हैं.
वरुण- ....और मैंने आजतक बैंगनी रंग के ग्रह भी नहीं देखे हैं.
(तभी सामने कुछ विमान आते दिखाई देते हैं)
-अनजान विमान, अपना परिचय दो वरना ध्वस्त कर दिए जाओगे.
स्वास्तिक- यह स्वर्गलोक की रक्षा सेना रोहिणी के अध्यक्ष स्वास्तिक का विमान हैं.
-दुश्मन विमान! तुम्हारे विमान को बंदी बनाया जाता हैं.
वरुण- दुश्मन? हम कौनसी आकाशगंगा में हैं?
-आकाशगंगा? तुम नरकलोक में हो.
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Sat Jan 21, 2017 2:25 pm by smenaria
» The Hell Lovers (स्वास्तिक)....A Love Against the God 【preview- हिंदी में】
Fri Jun 17, 2016 2:29 pm by smenaria
» The Hell Lovers-Pictures
Thu Oct 03, 2013 5:36 pm by smenaria
» Swastik- The Story
Thu Oct 03, 2013 5:32 pm by smenaria
» Poelogues- Concepts
Thu Oct 03, 2013 5:28 pm by smenaria
» Introduction
Thu Oct 03, 2013 5:21 pm by smenaria
» सभ्य व्यक्ति
Thu Apr 18, 2013 7:18 pm by smenaria
» मुनि, बहूं & वृद्ध पुरुष
Thu Apr 18, 2013 7:09 pm by smenaria
» भिखारी नेता जी
Thu Apr 18, 2013 7:06 pm by smenaria