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~ये इश्क़ बड़ा कम्बख़्त हैं~ एक प्रेम कहानी
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~ये इश्क़ बड़ा कम्बख़्त हैं~ एक प्रेम कहानी
YE ISHQ BADHA KAMBAQT HAI
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Last edited by helllover on Tue Jul 10, 2012 10:15 am; edited 1 time in total
Re: ~ये इश्क़ बड़ा कम्बख़्त हैं~ एक प्रेम कहानी
"YE ISHQ BADHA KAMBAQT HAI" is a romantic (non-erotic) story of two lovers in a village. Beyond the 'love' the story also covers many other black aspects of our society. It also includes some social evils. In the ending story will create thrill and finally has a happy ending...
For convience of users and to save their time for searhing updates I will put all updates together. To recognise updates easily updates will toggle between Red color and blue colour.
If you have any suggestions about this story please do write in comments.
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Re: ~ये इश्क़ बड़ा कम्बख़्त हैं~ एक प्रेम कहानी
Story Disclaimer
All the characters and events are imaginary which does not have
any relation with living or dead thing. Names and places used in
this story are also fictitious and does not relate to any. Even if
such a relation is found it will be just a coincidence.
SB Disclaimer
This story is written and edited by SB members and thus SB holds
rights and liabilities about this story. Distribution out of SB website
is permitted by SB so it do not create any copyright issue. Any copy
of material from our website or material posted outside website without
prior permission of SB will be offense and create claim. User are asked to
request copy permission from our website before copying and material.
Hell Lover's Prescription
This story follows all the standards and rules prescribed by SB for it's
writers. It does not contain any type of adult, unethical or antisocial
material.
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such a relation is found it will be just a coincidence.
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Hell Lover's Prescription
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material.
मुख्य कहानी
ये आग का दरिया है,
जिसमे डूब जाना है,
पार होना है अब किस को,
बस प्यार को पाना है.
कभी महकी हवा है,
कभी एक तूफ़ा है,
कभी दर्द है कभी दवा हैं,
कभी एक अहसास है.
ये इश्क़ बढ़ा कम्बख़्त हैं,
एक नयी कहानी हर वक़्त हैं.
धीरे-धीरे बस धीमी पड़ी और कंडक्टर ने आवाज़ दी- 'जैसलपुर'. यह नाम सुनकर उनिंदा राजीव एक दम से उठ गया. उसने अपना बेग उठाया और बस से नीचे उतरा. बस धीरे धीरे आगे बढ़ गयी.
नीचे खड़े-खड़े ही उसने एक बार पूरे गाँव को निहारा. वैसे तो वो इस गाँव मे कई बार आ चुका था, पर इस बार कुछ नया था. इस बार उसे यहा 3 साल तक रहना था. उसके गाँव 'आंगाढा' में केवल 12वी तक ही स्कूल था उससे आगे का कॉलेज वाहा से 20 किमी दूर पड़ता था जबकि 'जैसलपुर' से केवल 2 किमी ही दूर था और यहा उसके मामा भी रहते थे.
उसने बेग उठाया और वो घर की तरफ चल दिया. घर के बाहर ही उसे ममाजी बाहर जाते मिले.
"नमस्ते ममाजी" कहकर राजीव ने चरणस्पर्श किए.
"जीते रहो, काफ़ी देर लगा दी आने में" ममाजी ने कहा.
"हाँ, वो 8.00 बजे वाली बस छूट गयी थी" राजीव ने कहा.
"अछा बेटा, तुम अंदर जाओ में किसी काम से 'अमीडा' जा रहा हूँ"
ममाजी कहकर बाइक पर सवार हो गये. 'अमीडा' में ही राजीव का कॉलेज था. यह एक कस्बा था जो इस गाँव के लिए किसी बाज़ार की तरह था. किसी भी छोटे काम के लिए भी वही जाते थे. राजीव के एक्लोते ममाजी हरिप्रकाश जी गाँव के जाने माने साहूकार थे. 30 बिगा ज़मीन, 2 ट्रॅक्टर, गाँव में ही दो घर के साथ बहुत ही सम्रिध इंसान थे.
अंधर जाने पर उसे अपने मामा की लड़की कोमल अपनी 11वी की किताबे लेकर बेथि मिल गई. वा मामा जी की इक्लोटी लड़की थी. वैसे पहले एक भाई और था पर 2 साल पहले उसकी डूबने से मौत हो गई थी.
किताबो के साथ ही कोमल का मोबाइल पढ़ा था जिसकी लाइट जल रही थी. राजीव सारा माजरा समझ गया पर बोला कुछ नही.
"आओ भैया कब आए?" कोमल का चेहरा उतरा था पर उसने जुथि मुस्कान लाते हुए कहा.
"अभी तेरे सामने ही तो आया हू, तेरा ध्यान कहा था?" राजीव ने चिढ़ाते हुए कहा.
"मैं चाय बनाती हु बाद में आप खाना खा लेना." कोमल बात गुमाने में होशियार थी. वो अंधर जाकर पानी ले आई. पानी पिलाकर वो चाय बनाने चली गयी.
"अब तो आप यही रहोगे ना." कोमल चाय लाते हुए बोली.
"...और मुझे भी अकेलापन नही लगेगा" कहते हुए कोमल का चेहरा और भी उतार गया.
"हाँ......ममीज़ी कहा है?" राजीव अब तक कपढ़े बदल चुका था और लोवर & त-शर्ट पहेन चुका था.
"वो गायो को पानी पिलाने खेत गयी है." कोमल ने चाय दी और खुद वापस किताब लेकर बेथ गयी.
"और ये तेरा चेहरा क्यू उतरा हुआ है" राजीव ने चुस्की मारते हुए कहा.
"कुछ नही भैया बाद में बात करेंगे"
राजीव सोकर उठा तो उसने देखा की दिन के 3.00 बाज चुके थे. वो मुँह धोने के लिए नीचे आया. सीढ़ियो पर आते ही उसे पास के कमरे में कुछ आवाज सुनाई दी. ये कोमल थी शायद किसी पर फोन पर बात कर रही थी.
"....तुम्हे कोई बात एक बार में समझ मे नही आती क्या?"
"में तुम्हे पहले भी कई बार मना कर चुकी हूँ.....के आइन्दा मुझे फोन मत करना...."
"......वरना मैं अपने भाई से शिकायत कर दूँगी"
"बकवास मत करो..मैं अपने बुआ के लड़के राजीव की बात कर रही हूँ....."
राजीव ने बाहर से दरवाजा खटखटाया. कोमल ने फटाफट फोन रखकर दरवाजा खोला.
"किससे बात कर रही थी?" राजीव ने चेहरा पढ़ते हुए पूछा .
"को....कोई नही वो फ्रिनेड थी" कोमल ना चाहते हुए भी जुथ बोली.
"लेकिन तुम तो......."
"राजीव बेटा नीचे आ जाओ चाय पीलो" राजीव की ममीज़ी ने नीचे से आवाज़ दी. शायद राजीव की आवाज़ सुनकर उन्हे पता चल गया था की राजीव उठ गया था.
"हा मामी अभी आते है" कहकर दोनो नीचे चले गये.
"कल जाकर कोलाज में फॉर्म जमा करवा आना" चाय पीते हुए ममीज़ी ने कहा.
"गाँव के ही तीन-चार लड़के भी कल ही जाएँगे अड्मिशन लेने के लिए." ममाजी बोले.
"ठीक है अभी मैं जाकर दोस्तो से मिल आता हूँ" कहकर राजीव बाहर नीकल गया.
यहा पर भी राजीव के कुछ अच्छे दोस्त थे, उन्ही में से एक नरेश था. राजीव उसी के पास पहुचा .
"ओह राजीव, क्या बात है, आहो भाग्या हमारे जो आप हमारे घर पधारे" नरेश हंसते हुए बोला. वो उसके घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठा था.
"हा क्यू नही....और कैसा है" राजीव हाथ मिलाते हुए बोला.
"बस अछा....चल अंदर चल" नरेश बोला.
गर्मी बहोत थी तो नरेश ने शिकंजी बनवाई. मेवार का रिवाज ही कुछ ऐसा है आप जिसके भी घर जाओ चाय-नास्ता ज़रूर करवाया जाता है.
"....ठीक है तो कल दोनो ही जाकर फॉर्म भर आएँगे" नरेश ने कहा.
"ओ.क. दोस्त अब मैं चलता" कहकर राजीव घर आ गया.
शाम को खाना खाते वक़्त भी कोमल कुछ गुम्सुम नज़र आ रही थी पर राजीव कुछ पूछ नही पाया. अगले दिन नरेश और राजीव कॉलेज पहुँचे. फॉर्म भरने मे सिर्फ़ दो दिन ही बाकी थे इसलिए काफ़ी भीड़ थी और लाइन भी काफ़ी लंबी थी. दो गन्ते की मस्सकत के बाद राजीव और नरेश ने अपने फॉर्म भरे.
वो बाहर आने ही वेल थे तभी राजीव की नज़र एक लड़की पर पड़ी.
वो कुछ उदास सी लग रही थी. राजीव उसके पास गया.
राजीव, "क्या हुआ कोई प्राब्लम है क्या आपको?"
"जी...जी कुछ नही....आप कोन?"
राजीव,"आप कुछ परेशन लग रही है अगर कोई प्राब्लम हो तो मुझे बताए..."
"कुछ नही कोई प्राब्लम नही है" इस बार वो लड़की कुछ संभल चुकी थी और उसने प्रश्नवचक नज़र से देखा. राजीव समझ गया की इस तरह से उसे दखल नही देनी चाहिए थी. वो वापस आ गया.
इतनी देर मे नरेश भी आ गया था.
"तू अदिति से क्या बात कर रहा था?" नरेश ने पूछा.
"तू उसे जानता है?"
"अपने गाँव की ही तो है....कोई ऐसी वैसी लड़की नही है एक बार तो विनोद को भी......" इतना कहकर नरेश रुक गया.
विनोद कोमल का मंगेतर था. यहा मेवार में शादी जल्दी ही हो जाती है. कइयो के तो बालवीवाह भी; इसीलिए कोमल की भी 10वी में ही सगाई हो गयी थी इसी विनोद से.
राजीव कुछ पूछ पाता इससे पहले ही उसने देखा की अदिति उन दोनो की तरफ आ रही है.
"आ...नरेश मेरी हेल्प करोगे."
"हाँ अदिति" नरेश बोला.
"वो मे पहले फॉर्म जमा करने गई थी, तो उन्होने बीरथ डेट नही भरा होना बोलकर फॉर्म वापस दे दिया. अब मैं वापस गयी तो वो मुझे वापस लाइन में लगने के लिए बोल रहे है. पहले ही दो गन्ते खड़ी रह चुकी हूँ...और वापस 1.00 बजे की बस भी है..." अदिति ने एक साँस में ही सब कह दिया. नरेश ने राजीव की तरफ देखा.
"मैं देखता हू" राजीव बोला और अदिति के हाथ से फॉर्म लेकर डेपॉज़िट काउंटर की और बढ़ा.
"ये कोमल की बुआ का लड़का है ना" राजीव के जाने पर अदिति ने पूछा.
"हा क्या हुआ?"
"कुछ नही वो मेरी हेल्प के लिए आया था पर पहले मैं पहचान नही पाई थी"
"कोई बात नही"
इधर राजीव डेपॉज़िट काउंटर पर था. पहले तो फॉर्म जमा करने वाले ने थोड़ी ना-नुकुर की पर जब राजीव ने थोड़े तेश में आकर बात की और कॉलज के डीन से शिकायत करने के लिए कहा तो वो मान गया और फॉर्म ले लिया. राजीव वापस नरेश के पास आया. अदिति अभी भी वही खधि थी.
"थॅंक यू राजीव, मेरे से तो वो मान ही नही रहा था." अदिति ने थोड़ा शर्मिंदा होते हुए कहा.
"ये लोग ऐसे ही होते है, डर के बात करो तो माथे चड़ते है और थोड़ा धमकाओ तो बोलती बंद हो जाती है..." राजीव अदिति को शर्मिंदगी को भाप चुका था, पर उसने नज़र अंदाज़ करना ही ठीक समज़ा.
"थॅंक्स"
"ऑल्वेज़ वेलकम"
राजीव और नरेश कॉलज से निकल गये. रास्ते में कुछ देर की चुप्पी के बाद राजीव बोला
"तू वो विनोद के बारे मे क्या बोल रहा था?"
"देख अगर तू बुरा ना माने तो मे बताता हू" नरेश का ध्यान अब भी बाइक की ड्राइविंग पर ही था.
"अरे बोल ना..." राजीव थोड़ा उत्सुक था.
"पिछले साल इसने अदिति को पुर्पोसे किया था पर उसने मना कर दिया. ये गालिया देने लग गया तब अदिति ने गुस्से मे आकर इसे चांटा मार दिया..."
"पिछले साल, मतलब सगाई के बाद"
"हा, इसीलिए कोमल को तो विनोद से बात करना भी पसंद नही है लेकिन....." नरेश फिर बोलते-बोलते रुक गया.
"लेकिन क्या?"
"लेकिन फिर भी ये कोमल का पीछा ही नही छोड़ता है"
इस बार राजीव थोड़ा चोंक गया था.
"क्या मतलब है तेरा?"
"मतलब की ये कोमल को रोज फोन करके परेशन करता है और मिलने के लिए कहता है. कोमल ने मुजसे कहा तो मैने भी विनोद को समजाया पर वो उल्टा मेरे ही उपर आ गया. बोलता है मेरी मंगेतर है मैं कुछ भी करू तू कॉन होता है बोलने वाला....और फिर यार उसकी तो गॅंग ही गंडो की है मैं ज़्यादा बात भी नही कर सकता हू..."
"अछा तो अब सॅम्जा की कोमल कल किससे बात कर रही थी...."
इतनी देर में वे घर पहुँच चुके थे...
जिसमे डूब जाना है,
पार होना है अब किस को,
बस प्यार को पाना है.
कभी महकी हवा है,
कभी एक तूफ़ा है,
कभी दर्द है कभी दवा हैं,
कभी एक अहसास है.
ये इश्क़ बढ़ा कम्बख़्त हैं,
एक नयी कहानी हर वक़्त हैं.
धीरे-धीरे बस धीमी पड़ी और कंडक्टर ने आवाज़ दी- 'जैसलपुर'. यह नाम सुनकर उनिंदा राजीव एक दम से उठ गया. उसने अपना बेग उठाया और बस से नीचे उतरा. बस धीरे धीरे आगे बढ़ गयी.
नीचे खड़े-खड़े ही उसने एक बार पूरे गाँव को निहारा. वैसे तो वो इस गाँव मे कई बार आ चुका था, पर इस बार कुछ नया था. इस बार उसे यहा 3 साल तक रहना था. उसके गाँव 'आंगाढा' में केवल 12वी तक ही स्कूल था उससे आगे का कॉलेज वाहा से 20 किमी दूर पड़ता था जबकि 'जैसलपुर' से केवल 2 किमी ही दूर था और यहा उसके मामा भी रहते थे.
उसने बेग उठाया और वो घर की तरफ चल दिया. घर के बाहर ही उसे ममाजी बाहर जाते मिले.
"नमस्ते ममाजी" कहकर राजीव ने चरणस्पर्श किए.
"जीते रहो, काफ़ी देर लगा दी आने में" ममाजी ने कहा.
"हाँ, वो 8.00 बजे वाली बस छूट गयी थी" राजीव ने कहा.
"अछा बेटा, तुम अंदर जाओ में किसी काम से 'अमीडा' जा रहा हूँ"
ममाजी कहकर बाइक पर सवार हो गये. 'अमीडा' में ही राजीव का कॉलेज था. यह एक कस्बा था जो इस गाँव के लिए किसी बाज़ार की तरह था. किसी भी छोटे काम के लिए भी वही जाते थे. राजीव के एक्लोते ममाजी हरिप्रकाश जी गाँव के जाने माने साहूकार थे. 30 बिगा ज़मीन, 2 ट्रॅक्टर, गाँव में ही दो घर के साथ बहुत ही सम्रिध इंसान थे.
अंधर जाने पर उसे अपने मामा की लड़की कोमल अपनी 11वी की किताबे लेकर बेथि मिल गई. वा मामा जी की इक्लोटी लड़की थी. वैसे पहले एक भाई और था पर 2 साल पहले उसकी डूबने से मौत हो गई थी.
किताबो के साथ ही कोमल का मोबाइल पढ़ा था जिसकी लाइट जल रही थी. राजीव सारा माजरा समझ गया पर बोला कुछ नही.
"आओ भैया कब आए?" कोमल का चेहरा उतरा था पर उसने जुथि मुस्कान लाते हुए कहा.
"अभी तेरे सामने ही तो आया हू, तेरा ध्यान कहा था?" राजीव ने चिढ़ाते हुए कहा.
"मैं चाय बनाती हु बाद में आप खाना खा लेना." कोमल बात गुमाने में होशियार थी. वो अंधर जाकर पानी ले आई. पानी पिलाकर वो चाय बनाने चली गयी.
"अब तो आप यही रहोगे ना." कोमल चाय लाते हुए बोली.
"...और मुझे भी अकेलापन नही लगेगा" कहते हुए कोमल का चेहरा और भी उतार गया.
"हाँ......ममीज़ी कहा है?" राजीव अब तक कपढ़े बदल चुका था और लोवर & त-शर्ट पहेन चुका था.
"वो गायो को पानी पिलाने खेत गयी है." कोमल ने चाय दी और खुद वापस किताब लेकर बेथ गयी.
"और ये तेरा चेहरा क्यू उतरा हुआ है" राजीव ने चुस्की मारते हुए कहा.
"कुछ नही भैया बाद में बात करेंगे"
राजीव सोकर उठा तो उसने देखा की दिन के 3.00 बाज चुके थे. वो मुँह धोने के लिए नीचे आया. सीढ़ियो पर आते ही उसे पास के कमरे में कुछ आवाज सुनाई दी. ये कोमल थी शायद किसी पर फोन पर बात कर रही थी.
"....तुम्हे कोई बात एक बार में समझ मे नही आती क्या?"
"में तुम्हे पहले भी कई बार मना कर चुकी हूँ.....के आइन्दा मुझे फोन मत करना...."
"......वरना मैं अपने भाई से शिकायत कर दूँगी"
"बकवास मत करो..मैं अपने बुआ के लड़के राजीव की बात कर रही हूँ....."
राजीव ने बाहर से दरवाजा खटखटाया. कोमल ने फटाफट फोन रखकर दरवाजा खोला.
"किससे बात कर रही थी?" राजीव ने चेहरा पढ़ते हुए पूछा .
"को....कोई नही वो फ्रिनेड थी" कोमल ना चाहते हुए भी जुथ बोली.
"लेकिन तुम तो......."
"राजीव बेटा नीचे आ जाओ चाय पीलो" राजीव की ममीज़ी ने नीचे से आवाज़ दी. शायद राजीव की आवाज़ सुनकर उन्हे पता चल गया था की राजीव उठ गया था.
"हा मामी अभी आते है" कहकर दोनो नीचे चले गये.
"कल जाकर कोलाज में फॉर्म जमा करवा आना" चाय पीते हुए ममीज़ी ने कहा.
"गाँव के ही तीन-चार लड़के भी कल ही जाएँगे अड्मिशन लेने के लिए." ममाजी बोले.
"ठीक है अभी मैं जाकर दोस्तो से मिल आता हूँ" कहकर राजीव बाहर नीकल गया.
यहा पर भी राजीव के कुछ अच्छे दोस्त थे, उन्ही में से एक नरेश था. राजीव उसी के पास पहुचा .
"ओह राजीव, क्या बात है, आहो भाग्या हमारे जो आप हमारे घर पधारे" नरेश हंसते हुए बोला. वो उसके घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठा था.
"हा क्यू नही....और कैसा है" राजीव हाथ मिलाते हुए बोला.
"बस अछा....चल अंदर चल" नरेश बोला.
गर्मी बहोत थी तो नरेश ने शिकंजी बनवाई. मेवार का रिवाज ही कुछ ऐसा है आप जिसके भी घर जाओ चाय-नास्ता ज़रूर करवाया जाता है.
"....ठीक है तो कल दोनो ही जाकर फॉर्म भर आएँगे" नरेश ने कहा.
"ओ.क. दोस्त अब मैं चलता" कहकर राजीव घर आ गया.
शाम को खाना खाते वक़्त भी कोमल कुछ गुम्सुम नज़र आ रही थी पर राजीव कुछ पूछ नही पाया. अगले दिन नरेश और राजीव कॉलेज पहुँचे. फॉर्म भरने मे सिर्फ़ दो दिन ही बाकी थे इसलिए काफ़ी भीड़ थी और लाइन भी काफ़ी लंबी थी. दो गन्ते की मस्सकत के बाद राजीव और नरेश ने अपने फॉर्म भरे.
वो बाहर आने ही वेल थे तभी राजीव की नज़र एक लड़की पर पड़ी.
वो कुछ उदास सी लग रही थी. राजीव उसके पास गया.
राजीव, "क्या हुआ कोई प्राब्लम है क्या आपको?"
"जी...जी कुछ नही....आप कोन?"
राजीव,"आप कुछ परेशन लग रही है अगर कोई प्राब्लम हो तो मुझे बताए..."
"कुछ नही कोई प्राब्लम नही है" इस बार वो लड़की कुछ संभल चुकी थी और उसने प्रश्नवचक नज़र से देखा. राजीव समझ गया की इस तरह से उसे दखल नही देनी चाहिए थी. वो वापस आ गया.
इतनी देर मे नरेश भी आ गया था.
"तू अदिति से क्या बात कर रहा था?" नरेश ने पूछा.
"तू उसे जानता है?"
"अपने गाँव की ही तो है....कोई ऐसी वैसी लड़की नही है एक बार तो विनोद को भी......" इतना कहकर नरेश रुक गया.
विनोद कोमल का मंगेतर था. यहा मेवार में शादी जल्दी ही हो जाती है. कइयो के तो बालवीवाह भी; इसीलिए कोमल की भी 10वी में ही सगाई हो गयी थी इसी विनोद से.
राजीव कुछ पूछ पाता इससे पहले ही उसने देखा की अदिति उन दोनो की तरफ आ रही है.
"आ...नरेश मेरी हेल्प करोगे."
"हाँ अदिति" नरेश बोला.
"वो मे पहले फॉर्म जमा करने गई थी, तो उन्होने बीरथ डेट नही भरा होना बोलकर फॉर्म वापस दे दिया. अब मैं वापस गयी तो वो मुझे वापस लाइन में लगने के लिए बोल रहे है. पहले ही दो गन्ते खड़ी रह चुकी हूँ...और वापस 1.00 बजे की बस भी है..." अदिति ने एक साँस में ही सब कह दिया. नरेश ने राजीव की तरफ देखा.
"मैं देखता हू" राजीव बोला और अदिति के हाथ से फॉर्म लेकर डेपॉज़िट काउंटर की और बढ़ा.
"ये कोमल की बुआ का लड़का है ना" राजीव के जाने पर अदिति ने पूछा.
"हा क्या हुआ?"
"कुछ नही वो मेरी हेल्प के लिए आया था पर पहले मैं पहचान नही पाई थी"
"कोई बात नही"
इधर राजीव डेपॉज़िट काउंटर पर था. पहले तो फॉर्म जमा करने वाले ने थोड़ी ना-नुकुर की पर जब राजीव ने थोड़े तेश में आकर बात की और कॉलज के डीन से शिकायत करने के लिए कहा तो वो मान गया और फॉर्म ले लिया. राजीव वापस नरेश के पास आया. अदिति अभी भी वही खधि थी.
"थॅंक यू राजीव, मेरे से तो वो मान ही नही रहा था." अदिति ने थोड़ा शर्मिंदा होते हुए कहा.
"ये लोग ऐसे ही होते है, डर के बात करो तो माथे चड़ते है और थोड़ा धमकाओ तो बोलती बंद हो जाती है..." राजीव अदिति को शर्मिंदगी को भाप चुका था, पर उसने नज़र अंदाज़ करना ही ठीक समज़ा.
"थॅंक्स"
"ऑल्वेज़ वेलकम"
राजीव और नरेश कॉलज से निकल गये. रास्ते में कुछ देर की चुप्पी के बाद राजीव बोला
"तू वो विनोद के बारे मे क्या बोल रहा था?"
"देख अगर तू बुरा ना माने तो मे बताता हू" नरेश का ध्यान अब भी बाइक की ड्राइविंग पर ही था.
"अरे बोल ना..." राजीव थोड़ा उत्सुक था.
"पिछले साल इसने अदिति को पुर्पोसे किया था पर उसने मना कर दिया. ये गालिया देने लग गया तब अदिति ने गुस्से मे आकर इसे चांटा मार दिया..."
"पिछले साल, मतलब सगाई के बाद"
"हा, इसीलिए कोमल को तो विनोद से बात करना भी पसंद नही है लेकिन....." नरेश फिर बोलते-बोलते रुक गया.
"लेकिन क्या?"
"लेकिन फिर भी ये कोमल का पीछा ही नही छोड़ता है"
इस बार राजीव थोड़ा चोंक गया था.
"क्या मतलब है तेरा?"
"मतलब की ये कोमल को रोज फोन करके परेशन करता है और मिलने के लिए कहता है. कोमल ने मुजसे कहा तो मैने भी विनोद को समजाया पर वो उल्टा मेरे ही उपर आ गया. बोलता है मेरी मंगेतर है मैं कुछ भी करू तू कॉन होता है बोलने वाला....और फिर यार उसकी तो गॅंग ही गंडो की है मैं ज़्यादा बात भी नही कर सकता हू..."
"अछा तो अब सॅम्जा की कोमल कल किससे बात कर रही थी...."
इतनी देर में वे घर पहुँच चुके थे...
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