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Post by smenaria Mon Jun 18, 2012 7:36 pm

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How I Found My Lost Mobile~ एक आम आदमी की कहानी


मुझे यह बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है की ईश्वर की असीम कृपा, परिवारजनो की प्राथनाओ, मित्रो की सहायता, चोर भाई के आंशिक सहयोग एवं पुलिस प्रशाशन के "विशेष सहयोग" से मुझे आज मेरा एक माह पूर्व खोया हुआ मोबाइल फिर से प्राप्त हो गया.

एक माह पूर्व जब में केशव नगर, यूनिवर्सिटी रोड, उदयपुर स्थित अपने कोचिंग संस्थान पर कोचिंग के लिए जा रहा था तभी मुझे रास्ते में एक कॉल प्राप्त हुआ. कॉल सुनने के बाद मेने मोबाइल अपनी गाड़ी की जेब में ही रख दिया. कोचिंग पहुचने पर मैं उपर पड़ने की लिए चला गया. कुछ समय बाद मुझे ध्यान आया की मैं मोबाइल तो अपनी गाड़ी की जेब में ही भूल आया हूँ. जब मेन वापस नीचे पहुँचा तो मेरा मोबाइल वहा से गायब थे. मेने मित्रो के फोन से फोन किया पर मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था.

"मैं समझ चुका था की मोबाइल मेरे हाथ से जा चुका हैं तथा अब कुछ भी संभव नही है."

मैं अपने मित्र हरीश के साथ अपनी सिम कार्ड बंद करवाने आइडिया ऑफीस गया ताकि सिम का दुरुपयोग ना हो. आइडिया ने ओरिजिनल आईडी ना होने के कारण सिम बंद करने से मना कर दिया.

" आइडिया कंपनी का व्यवहार सहयोग पूर्ण रहा, वे केवल अपनी ओपचारिकताए पूरी कर रहे थे, एक सप्ताह पश्चात मेने ओरिजिनल आईडी देकर सिम बंद करवाकर नई सिम जारी करवा ली."


शाम को मेने अत्यंत दुख के साथ अपने पिताजी को सूचित किया जिन्होने व्यस्तता के चलते कुछ समय बाद बात करने को कहा. पापा ने कुछ समय बाद फोन किया तथा मेरी अपेक्षा के विपरीत बिना कोई आक्रोश दिखाए मुझे सांत्वना दी तथा कहा की शीघ्र ही मुझे नया मोबाइल भेज देंगे.

"बहुत कम खुशकिस्मत लोगो को ऐसे पिता मिलते हैं, आश्चर्यजनक रूप से इसके तीसरे दिन मेरा नया एन्ड्रॉयड मोबाइल मेरे पास था."

जब मेरे मामाजी तुलसीराम जी मेरा मोबाइल लेके आए तो हमने निश्चय किया की किसी भी समस्या से बचने के लिए मोबाइल की एफआईआर करवानी चाहिए. हम दहलीगेट स्थित चौकी पहुँचे जहाँ उपस्थित लोगो ने हमें पूरी प्रक्रिया समझाई.

"उन लोगो का रवैया सहयोग पूर्ण था, उन्होने तीन बार हमे संपूर्णा प्रक्रिया बताई तथा हमारे सभी सवालो का जवाब दिया."

प्रक्रिया के अनुसार हम कोर्ट पहुँचे जहाँ हमे एफिदेविट बनवाना था. एक परिवारिक मित्र के सहयोग से हमने एफिदेविट बनवाया तथा अगले चरण में एसपी ऑफीस के साइबर सेल में पहुँचे जहाँ हमे एफआईआर ना होने के कारण कार्यवाही करने से मना कर दिया.

"एसपी ऑफीस के साइबर सेल के लोगो का व्यवहार अपेक्षाकृत सहयोग पूर्ण था तथा दिए हुए समय में अपना कार्य कर दिया."

अतः वहाँ से हम लोग प्रतपनगर थाने पहुँचे जहाँ हमे चोरी का स्थान अपने एरिया में ना होना बताकर हमे भोपालपुरा थाने भेजा.

"उन लोगो का व्यवहार फिर भी अच्छा था एक पुलिस वाले ने हमारी एफआईआर पत्र लिखने मे मदद की. उसके पश्चात मामाजी को घर(गाँव) जाना था अतः वे निकल गये."

तब में अकेला भोपालपुरा थाने पहुँचा जहाँ थानेदार ने अत्यन्त बदतमीज़ी से बात की तथा मुझे मोबाइल का बिल लेके आने के लिए कहा.

एक़ सप्ताह बाद गाँव से बिल लाकर में अपने मित्र मोहित के साथ थाने पहुँचा जहाँ इस बार अच्छा बर्ताव करते हुए मेरी एफआईआर लिख ली गई. जिसे मेने एसपी ऑफीस के साइबर सेल में दिया जिन्होने कार्यवाही करते हुए कुछ दीनो में मुझे उस फोन में चालू नंबर बताया तथा कहा की अधिक जानकारी थाने में मैल कर दी गई है.

अगले दिन में थाने पहुँचा लेकिन इंटरनेट ना चलने की बात कहकर मैल चेक नही की गयी.अगले दिन आश्चर्यजनक रूप से मैडम ने कार्य की व्यस्तता का बहाना बना के मैल चेक करने से मना कर दिया.

कुछ दिन बाद पुनः मे अपने मित्र भगवत मेनारिया(सोनू) को लेकर थाने पहुँचा तब मैडम मैल चेक करने को राज़ी हुई.

"मुझे आश्चर्य हुआ की वे आज भी एक Intel PIII Computer, Internet Explorer 6, Windows XP तथा एक ब्राओड़बेंड जिसकी गति मेरे मोबाइल के नेट से भी धीमी है प्रयोग कर रहे है."

पंद्रह मिनट की मेहनत के बाद मैडम मैल खोलने में सफल रही. मैने आगे की कार्यवाही के लिए पूछा तो मेडम ने संबंधित अफ़सर से बात करने के लिए कहा.

संबंधित अफ़सर ने कार्यवाही के लिए मोबाइल की कीमत के आधे का 'खर्चा-पानी' माँगा.

"मेरे मोबाइल का क्रय मूल्य दस हज़ार रुपये था जिसका आधा पाँच हज़ार रुपये होता है, किंतु मेरे मोबाइल का वर्तमान मूल्य ही पाँच हज़ार रुपये होता है. कुल मिलाकर मुझे पुलिस से अपना ही मोबाइल खरीदना था."

मैने बाद में "समझने" की बात कहकर आगे की कार्यवाही करने के लिए कहा. तब अफ़सर ने चोर को फोन किया जिसने अत्यंत सहयोगपूर्ण रवैये से अपनी सारी जानकारी दे दी तथा यह भी बताया की आज वह प्रसादि में जाएगा, यह शनिवार की बात थी अतः अफ़सर ने सोमवार को मोबाइल मंगवाने तथा मंगलवार को हमे बुलाने की बात कही.

मंगलवार को मुझे फोन आया जिसमे फोन की जानकारी माँगी गयी तथा कहा की तलाशी के लिए आदमी भेजा जा रहा है.

उसके बाद मुझे कोई फोन नही आया तब में शुक्रवार(कल) को थाने पहुँचा, सारा स्टाफ कलेक्ट्री गया हुआ था (यह उसी दिन की बात है जब भंवरी देवी के हत्यारे को बचाने के लिए कलेक्ट्री में फायरिंग हुई थी). अगले दिन पुनः अपने मित्र भगवत मेनारिया(सोनू) के साथ थाने पहुँचा पर संबंधित अफ़सर नही था, हमने नंबर लेकर अफ़सर से बात की तो उन्होने आदमी भेजने किंतु मोबाइल ना मिलने की बात कही तथा कहा की कल पुनः आदमी भेजा जाएगा.

"हम पूरी तरह से निराश थे तथा हमने निश्चय किया की हम सुबह स्वयं जाकर मोबाइल ढूंढ़ेंगे."

सुबह मे अपने मित्र सोनू के साथ बिछड़ि चौराया पहुँचा, जहा कि चोर भाई ने पुलिस को अपने ट्रॅक्टर का स्टॉप होना बताया था. हमने वहा पहुँचकर एक दो लोगो से पूछा लेकिन कोई सुराग नही मिला. तब हमने चोर भाई के नंबर(जो की हमे एसपी ऑफीस से मिले थे) पर फोन किया जिसने हमे पास ही जिंक चौराहे पर होने की बात कही किंतु अधिक जानकारी नही बताई, तब हमने पुलिसवाला होना बताया तथा थोड़ी धमकी दी. तब चोर भाई ने वही जिंक चौराहे पर मिलने की बात कही. हम वहा पहुँचे तथा पुनः फोन किया किंतु उसने फोन नही उठाया. दो तीन अन्य प्रयास के बाद उसने फोन उठाया एवं मेन रोड पर होना बताया. वहा पहुँचकर हमने पुनः फोन किया लेकिन उसने फोन नही उठाया अंत में उसने फोन उठाया तथा "पहुँच रहा हूँ" ऐसा कहा.

"चोर भाई ने आते ही हाथ मिलाया लेकिन मेरे मित्र ने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया. उसने कहा की मैं ट्रॅक्टर का कार्य दो माह पूर्व ही छोड़ चुका हूँ तथा अब भन्गार का काम करता हूँ. मुझे मालूम नही था की यह इस मोबाइल के लिए फोन किए जा रहे हैं अन्यथा मैं मोबाइल लोटा देता. मुझे मोबाइल रास्ते मैं पड़ा मिला था."

हमे नही पता उसकी बात में कितनी सचाई थी, किंतु हमे अपना मोबाइल मिल चुका था. हम उसे थाने जाकर एफआईआर रद्द करवाने की बात कहकर वापस आ गये.

"हमने घर पहूचकर एक अच्छे नागरिक बनाते हुएँ अफ़सर को इस बात की जानकारी दी, जिन्होने इसी कार्यवाही में लगे होने की बात कही(धन्य हो)."

कुछ समय बाद अफ़सर ने हमे थाने आकर मिलने की बात कही.हम निर्भय होकर थाने पहुँचे.

थाने पहुँचने पर अफ़सर ने हमसे अत्यंत भद्दे तरीके से बात की. तथा कहा की "अगर खुद ही थानेदार हो तो पुलिस को परेशान क्यूँ किया?"

इस पर हमने कहा की "आप तो एक सप्ताह में भी मोबाइल नही ढूंड पाए हो."

इस पर अफ़सर भड़क गया और कहा की हम कार्यवाही कर रहे हैं तथा हमारे आदमी इसी काम में लगे है(पुनः धन्य हो). आप चोर को वही छोड़ आए उससे अन्य भी मोबाइल निकल सकते हैं."

तब हमने कहा की ''कैसी कार्यवाही? हम आम आदमी होकर जब दो घंटे में जाकर मोबाइल ला सकते है तो आप पुलिस होकर दो साप्ताह में मोबाइल नही ढूंड पाए. बाकी तो छोड़िए यहा तो मैल चेक करने में भी दो सप्ताह लगे थे तथा चोर को पकड़ना हमारा नही पुलिस का काम है."

तब वह कुछ ठंडा पड़ा तथा एफआईआर रद्द करवाने की बात कही. अंत में अफ़सर ने कार्यवाही की एवज में एच्छिक रूप से कुछ खर्चा-पानी देने की बात कही. इस पर हम "धन्यवाद" कह कर निकल गये.

मित्रो प्रश्न यह है की क्या हमारे देश की पुलिस सिर्फ़ नेताओ की रक्षा के लिए है? जब हमे हर काम के लिए खर्चा-पानी देना पड़े तो हम टॅक्स क्यूँ दे? क्या हमारे देश की क़ानून व्यवस्था का आम आदमी के लिए कोई महत्व नही है?

और अंत में- मैं मोबाइल मिलने पर किसे धन्यवाद दूं पुलिस को या चोर को?


~SB Disclaimer~
The story described above is based on unverified facts provided by Su.mit K. Menaria and Bhagwat (Sonu) Menaria. SB and it's admin team do not hold any liability about trueness of the facts.

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